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हरिहरपुरी की कुण्डलिया




हरिहरपुरी की कुण्डलिया


तरसो मत हर्षो सदा , कम हो अथवा ढेर।

प्रेमाकुल हो नृत्य कर,बन कर प्रेम-कुबेर।।

बन कर प्रेम -कुबेर, प्रेम-धन सबको बाँटो।

यह अमृत सिद्धांत, इसी से जीवन काटो।।

कहें मिसिर कविराय,प्रेम-वारिद बन बरसो।

सब पर प्रेम उड़ेल, प्रेम बिन कभी न तरसो ।।



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1 Comments

Sachin dev

31-Dec-2022 06:07 PM

Nice

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